Tuesday 08 October 2024 8:03 AM
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जन भागीदारी से गाँव व समुदाय की प्रगति के नए द्वार खोले जा सकते है

जन भागीदारी से समुदाय की प्रगति

लेखक : श्याम कुमार कोलारे,
स्वतंत्र लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता

दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस l जिस चीज में अपनी कोई भागीदारी होती है, उससे एक आत्मीय जुड़ाव हो जाता है l उसे सहजने में एवं उसका रखरखाव में लोग स्वतः ही जुड़ने लगते है l यही कारण है कि पंचायती राज्य व्यवस्था में ग्राम पंचायत को गाँव के विकास के लिए स्वतंत्र अधिकार दिया गया है l ग्राम का चुना हुआ प्रतिनिधि गाँव का मुखिया होता है एवं गाँव व लोगो की जनभागीदारी से गाँव के विकास की परिकल्पना करता है l आखिर हो भी क्यों न? गाँव के उज्जवल भविष्य के बारे में गाँव वाले से बेहतर और कौन सोच सकता है ! गाँव में रहने वाले लोग एक समुदाय में रहते है एवं एक दूसरे से आपसी सामंजस्य बनाते हुए अपना जीवन यापन करते है l एक दूसरे के लिए सहयोग की भावना किसी भी समुदाय या समूह को और मजबूत व सशख्त बनाती है l
हमारा सारा जीवन किसी न किसी की सहायता एवं मदद से ही आगे बढ़ता है l बिना किसी की मदद से मनुष्य का जीवन ही संभव नहीं है l हमारे जीवन बचपन से लेकर वृद्ध तक बहुत से लोगों का एहसान एवं मदद का ऋणी होता है; जिसमे हमारे माता-पिता, गुरुजन, पडोसी, रिश्तेदार एवं हमारे दोस्तों का सहयोग हमारे जीवन को बहुत प्रभावित करता है l कहते है कि किसी भी सफल पुरुष के पीछे किसी महिला का हाथ व साथ होता है, वह महिला हमारी माँ, जीवनसाथी या अन्य कोई मददगार भी हो सकती है l हमारे जीवन में सहयोग व साथ का बहुत महत्व है l
एक जुटता की कहानी के बारे में हमने बहुत सुना है एवं समुदायिक, जनभागीदारी के कार्यों से कठिन से कठिन कार्यों को आसानी से होते देखा है l यदि हमारे सामने पहाड़ जैसी चुनौती भी है तो जन भागीदारी से उस कठिनाई को भी लाँघा जा सकता है l किसी भी विषम परिस्थिति को अनुकूल करके सफलता पाई जा सकती है l यदि हम अपने आसपास कोई भी सुविधाओं की चीजो को जन समुदाय से बनाये एवं उसका संरक्षण करते हुए सहज कर रखे तो यह हमारे जीवन को सुखमय बनाने में मदद करेगी l
हम सभी सरकारी तंत्र में रहते है एवं सरकार के नियमानुसार सुविधाओं का उपयोग कर जीवन यापन करते है l हमारे चारो और सरकारी सुविधाओं का अम्बार लगा रहता है l उसका उपयोग हम व हमरे साथ सभी लोग करते है l सरकार हमारी सुविधाओं के लिए अपने स्तर पर भरपूर सहयोग करती है l हमारा नजरिया भी कही न कही यह हो जाता है कि ये सुविधा प्रदान करना तो सरकार का काम है और इसे उपभोग करना हमारा काम l परन्तु उसकी देखरेख एवं रखरखाव में शायद हम व्यक्तिगत एवं सरकारी का भेदभाव करना प्रारंभ कर देते है l इसलिए सरकारी सुविधाओं को हम सरकार की जिम्मेदारी समझकर सरकार पर टाल देते है l परन्तु सरकार ने जो सुविधा हमें दी है वह हमारी है, हम सब की है; इसे हमें ही देखरेख व रखरखाव करने की आवश्यकता है l जिस गाँव व शहर में जन भागीगारी से काम होता है उस गाँव में प्रगति दौड़ते हुए जाती है l
गाँव में सरकारी तंत्र का सबसे बड़ा एवं हमारे जीवन को प्रभावित करने वाली सुविधा है सरकारी स्कूल l यदि हम गाँव से है तो हमने गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़कर अपनी शिक्षा को पूर्ण की है l सरकारी स्कूल में सरकार द्वारा हमें निःशुल्क शिक्षा पदान की जाती है l शिक्षा, गणवेश, पुस्तके, मध्यान्ह भोजन, छात्रवृत्ति आदि की सुविधा देकर हमारे शिक्षित करने के लिए सरकार गाँव – गाँव में स्कूल खोलती है l हमारे गाँव के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते है और आगे बढ़ते है l हम सभी सरकारी स्कूल में पढ़कर आगे तो बढ़ गए है, परन्तु हमारा सरकारी स्कूल जैसा का वैसा है l सरकार समय-समय पर स्कूलों की सुविधाओं के लिए काम करती है, सरकार का ध्यान यदि इन स्कूलों की और नहीं गया तो ये स्कूल मात्र एक भवन बनकर रह जाती है, न उसमे कोई सुविधा न कोई अपडेट l ऐसे समय में गाँव वालों की जन भागीदारी बहुत अहम हो जाती है कि सरकारी स्कूलों में सुविधाओं के लिए सरकार को ध्यान दिलाये व कुछ कार्य को आपसी सहयोग एवं दान के माध्यम से सुविधाजनक बनाने में मदद करें l
हमारे आसपास हम बहुत से ऐसे सरकारी स्कूल देख सकते है कि वो बच्चे की मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष करते हुए नजर आते है l स्कूल में अच्छा खेल का मैदान नहीं होता, यदि होता भी है तो वह खेलने लायक नहीं होता, स्कूल भवन  जर्जरता का शिकार होकर बरसात में अपने आंसू बहा रहा होता है l स्कूलों के आसपास स्वच्छता का अभाव के कारण वहाँ का माहौल नीरस रहता है l क्या गाँव का यह स्कूल सरकार का है हमारा नहीं ? क्या हमारे गाँव के पढ़ने वाले बच्चों के उपयोग में आने वाला यह विद्या का मंदिर हमारा नहीं है? हम इसको अनदेखा क्यों करते है l क्या हम सब मिलकर उसे दुरुस्त करने में अपना सहयोग नहीं दे सकते है?
हम सभी अपने जीवन में बहुत से ऐसे खर्चे करते है जिसका प्रत्यक्ष लाभ नहीं होता या उसका नुकसान जानते हुए भी खर्च करते है l क्या हम अपने गाँव के स्कूल को बेहतर बनाने के लिए अपना अल्पांश नहीं दे सकते? थोड़ा सोचना होगा! हमने जिस स्कूल से हमेशा लिए ही है, क्या हमें उसे कुछ वापिस नहीं करना चाहिए ? हमें हमारे मन में “पे बैक टू स्कूल” की भावना से कुछ न कुछ अवश्य सहयोग करने की आवश्यकता है l यह पहल हम कुछ विशेष अवसरों को यादगार बनाने के लिए कर सकते है l जैसे हमारे जन्मदिवस में, किसी की बरसी, सालगिरह, किसी त्यौहार या अवसर पर स्कूल के बच्चों के लिए दान और मदद कर उनके चेहरे में मुस्कराहट लाया जा सकता है l  

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं l लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है l इसके लिए समाजहित एक्सप्रेस न्यूज़ पोर्टल किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है l)

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