अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सेवानिवृत बाबूलाल बारोलिया का महिलाओ के नाम सन्देश
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर समाजहित की सोच के धनी सेवानिवृत बाबूलाल बारोलिया ने महिला शक्ति पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि परिवार की शक्ति नारी है, राष्ट्र की शक्ति नारी है । महिलाएं पुनः इतिहास दोहरा रही है । इस अवसर पर महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्रेम प्रकट करते हुए बाबूलाल बारोलिया ने महिलाओ के नाम एक सन्देश प्रसारित किया है जो समाजहित एक्सप्रेस के माध्यम से आपको प्रस्तुत है :
अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्रेम प्रकट करते हुए, महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक उपलब्धियों एवं कठिनाइयों की सापेक्षता के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है । महिला दिवस एक लैंगिक – समान दुनियां के लिए एक आह्वान भी करता है जो पूर्वाग्रह, रूढ़िवादिता और भेदभाव से मुक्त है और विविध, न्यायसंगत और समावेशी है ।
भारतीय संस्कृति में क्या खूब कहा गया है – यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता: अर्थात जहां नारी की पूजा की जाती है, उसका सम्मान किया जाता है, वहां देवताओं का वास होता है। लेकिन प्राचीन भारत की मनुस्मृति में यह पढ़ा और सुना होगा कि शुद्र और नारी को पढ़ने का अधिकार नहीं था। ये केवल सेवा और भोग्य के लिए है। यह तो भला हो उन महापुरुषों का जिनमे, सावित्री बाई फुले, ज्योतिबा फुले, राजाराम मोहनराय, दयानंद सरस्वती, बाबा साहेब अंबेडकर प्रमुख महापुरुषों ने इस भेदभाव को समाप्त करने की मुहिम छेड़कर अपने अथक प्रयासों से शिक्षा, समानता, न्याय और स्वतंत्रता का अधिकार दिलाया । आज उन्ही की बदौलत शिक्षित होकर नारी हर क्षेत्र सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, वैज्ञानिक और खेल जगत में पुरुषों के बराबर अपना परचम फहरा रही है । यह भी कहते सुना है कि एक नारी पढ़ेगी तो सौ पीढियां तरेगी । महिला शिक्षित होगी तभी अपने बच्चों को सही ढंग से शिक्षित और स्वस्थ कर पाएंगी। महिलाओं को पुरुषों के बराबर दर्जा दिलवाने के लिए महिलाओं का शिक्षित होना जरूरी है ।
आज पूरे विश्व में महिला दिवस मनाया जा रहा है और इस अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को बराबर का दर्जा प्राप्त करवाना है, जिससे उन्हें किसी भी अधिकार से वंचित न किया जाए । उनके साथ किसी भी क्षेत्र में भेदभाव न किया जाए । इस खास अवसर पर महिलाओं के अधिकारों के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए कई कार्यक्रम और कैंपेन भी आयोजित किए जाते हैं । इसी उपलक्ष में मेरा महिलाओं को यह आव्हान करना चाहूंगा कि आज महिलाएं शिक्षित होने के बाद भी सबसे ज्यादा अंधविश्वास, पाखंड और कुरीतियाँ मानने वाली हो गयी है । क्योंकि जो नारी कहेगी वो ही पुरुष करेंगे, दोनों को साथ साथ आजीवन रिश्ता जो निभाना है। नारी के आगे तो भगवान को भी झुकना पड़ा है । नारी जो ठान लेती है, वह करके रहती है । हम यह भी कहते है कि एक सफल व्यक्ति के पीछे नारी का हाथ होता है । अतः आज के इस पावन दिवस पर करबद्ध निवेदन है कि आज की शिक्षित महिलाएं समाज में फैल रही कुरीतियां, पाखंड,अंधविश्वास – बाल विवाह, दहेजप्रथा, मृत्युभोज, लिंग भेद, झाड़ा फूंक और काल्पनिक देवी देवता व भगवान के नाम पूजा पाठ और व्रत उपवास आदि में अपना तन, मन, धन और समय व्यर्थ करने के बजाय इनको मिटाने तथा जनकल्याणकारी कार्य में खर्च करेगी तो अपने परिवार, समाज और देश को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने का कार्य कर सकती है। यदि महिलाएं ठान ले तो वे समाज की दशा व दिशा दोनों बदल सकती है ।
बिना महिला के विकसित समाज व देश की कल्पना करना निरर्थक है । अतः मेरा शिक्षित महिलाओं से निवेदन है कि अपने बच्चों की प्रथम गुरु है अतः अपनी औलादों को समाज में फैली कुरीतियां, अंधविश्वास, पाखंड, ढोंग, पूजा पाठ, व्रत उपवास और रूढ़िवादी परम्पराओं से दूर रखकर और एक स्वस्थ और विकसित समाज व देश का निर्माण करने में सहयोग प्रदान करे । इस पहल की महिलाओं से ही अपेक्षा है । एक बार पहल करके तो देखिए । ????????धन्यवाद???????? बाबूलाल बारोलिया, अजमेर ।