कोई जरूरी नहीं कि आपको जो दिख रहा, वही सही है । सच्चाई इससे कुछ अलग भी हो सकती है
एक दिन मैं अपनी कार से कहीं जा रहा था। रोड पर बहुत ही अधिक भीड़ थी । हमारी कार के आगे एक कार बहुत धीरे-धीरे चल रही थी । भारी ट्रैफिक के कारण उसकी बगल से गाड़ी निकालना भी संभव नहीं लग रहा था पर वह कार आगे का रास्ता बिलकुल क्लीयर होने के बावजूद बहुत ही धीरे-धीरे चल रही थी ।
जैसा कि ऐसी स्थिति में अमूमन अधिकांश लोग करते हैं, मैंने अगले कार वाले से पास लेने के लिए खीझते हुए हॉर्न बजाए और मन ही मन कार वाले को कहा कि चलाना नहीं आता तो रोड पर क्यों गाड़ी ले आये ???
अचानक मेरी नजर कार पर लगे स्टीकर पर पड़ी जिस पर लिखा था – Physically challenged inside please be patient. ” यानि कार में दिव्यांग है । कृपया धैर्य रखें।”
जैसे ही मेरी नजर उस स्टीकर पर पड़ी , सब कुछ बदल चुका था । मेरा दिमाग बिलकुल शांत हो गया । मेरी गाड़ी धीरे हो गयी और उस गाडी़ के ड्राइवर के प्रति मन में एक अलग टाइप की फीलिंग आ गयी । मैं सोचने लगा कि इन्हें किसी तरह की दिक्कत ना आये ।
इस कारण मैं अपने घर थोड़ी देर से पहुँचा । फ्रेश होने के बाद चाय की चुस्कियां लेते हुए मैं इस घटना को याद कर चिंतन करने लगा कि एक स्टीकर मात्र ने सब कुछ कैसे बदल दिया? उस मामूली सी स्टीकर ने मेरा सोचने का तरीका बदल दिया । कहां मुझे उस पर इतना गुस्सा आ रहा था और कहां मैं अचानक इतना शांत और केयरिंग हो गया । एक स्टीकर ने मेरी भावनाओं को बिलकुल ही बदल कर रख दिया । मुझे इमपैसेन्ट से पैसेन्ट बना दिया , अधीर व उतावले मन को ज्यादा धैर्यवान और केयरिंग बना दिया ।
दोस्तों, दिन भर में हम ना जाने कितने लोगों से मिलते हैं । इनमें से ना जाने कितने लोग अपनी व्यक्तिगत और प्रोफेशनल परेशानियों से जूझ रहे हैं लेकिन हमें उनके दु:ख तकलीफ के बारे में मालूम नहीं होता क्योंकि उनके माथे पर कोई स्टीकर नहीं लगा कि वो परेशान हैं ।
उनके चेहरे पर यह नहीं लिखा होता कि उनकी जॉब चली गयी है या उन्होंने किसी प्रिय व्यक्ति को खो दिया है । उन्हें देखकर यह भी पता लगा पाना मुश्किल ही है कि वे किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं और उनके पास ईलाज कराने के लिए पैसा नहीं है आदि आदि……
ना जाने सामने वाला अपनी मुस्कुराहट या हँसी के पीछे कितने गम छुपा रहा है पर हम उसके गम से बिलकुल बेखबर अपने में ही रमे रहते हैं ।
दोस्तों, हम सभी अपनी जिंदगियों में एक अदृश्य सी लड़ाई लड़ रहे होते हैं जिसकी जानकारी किसी दूसरे को नहीं होती…..अत: सच्चाई को समझे बिना किसी के प्रति किसी तरह की धारणा बनाना, किसी निष्कर्ष पर पहुंचना बिलकुल ही उचित नहीं । हम बस इतना कर सकते हैं कि हम दूसरों के प्रति दयालु, धैर्यवान और सहनशील बनें । दूसरों से sympathy ( सहानुभूति) नहीं बल्कि Empathy यानि समानुभूति रखें । चेहरे पर लगे इन अदृश्य स्टीकरों को हमें समझने की कोशिश करनी चाहिए । अगर हम ऐसा करने लगे तो हम कई सारी गलतफहमियों का शिकार होने से बच जाएंगे । किसी ने सच ही कहा है कि वेद पढ़ना आसान है पर किसी की वेदना को पढ़ पाना आसान नहीं है ।
एक बात और, आज लोग अपना पैशेंस खो रहे हैं, इसलिए जल्द ही पैसेंट बन जा रहे । लोग शारीरिक रूप से कम बीमार हैं पर मानसिक रूप से अधिक बीमार हैं । जो शारीरिक रूप से बीमार होते हैं, उन्हें तो देखकर ही समझ आ जाता है पर मानसिक रूप से बीमार लोगों का पता लगा पाना इतना सरल नहीं है । उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारे सोचने-समझने की क्षमता पर भी असर पड़ता है अत: अगर हमने पैसेंश को दरकिनार किया तो फिर हमें पैसेंट बनने से कोई रोक नहीं सकता । पहले हम मानसिक रूप से बीमार पड़ेंगे, फिर शारीरिक रूप से पर अगर हम पैसेंश को बनाकर रखेंगे तो फिर हम जल्दी पैसेंट नहीं बनेंगे । एक बार सोचिएगा जरूर ।