Thursday 08 May 2025 10:48 PM
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शाही सगाई-शादियों का दौर समाप्ति की ओर, समाज में बढ़ा सादगी का चलन

दिल्ली , समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l दिखावे की होड़ छोड़ सादगी से निभाई गई सगाई की पवित्र रस्में, दिनांक 4 मई 2025 को भवानी सिंह सुपुत्र स्वर्गीय ईश्वर लाल जी सालोदिया, निवासी ए- 4 मानसिंहपूरा टोंक रोड ने अपने पुत्र संजू सालोदिया की सगाई उत्तम चंद दोतानिया (चावडिया) हाल निवासी वेद विहार कॉलोनी सांमरिया रोड कानोता की सुपुत्री दीप्ती दोतानिया के साथ सादगी से ख़ुशीनुमा वातावरण में हुयी l दोनों बच्चों को समाज के महानुभावो की ओर से भावी गृहस्थ जीवन का आशीर्वाद प्रदान किया गया ।

जागरूक समाज सेवक व आमेर तहसील पूर्व उपाध्यक्ष (अ भा रै मा) जाहोता (रामपुरा) निवासी कालूराम मोहनपुरिया जी जोकि पारिवारिक रिश्ते से बच्चों के नाना जी ने बताया कि इस सगाई की रस्म कार्यक्रम में अनावश्यक जुवारी और कपड़ों पर रोक लगाते हुए केवल लड़के व उनके माता-पिता और दादा दादी के ही कपड़े लेकर समाज में व्याप्त सगाई की रस्मो के नाम पर बढे हुए आडम्बरो को समाप्त करने की दिशा में एक अनुकरणीय पहल की है।

कालूराम मोहनपुरिया जी ने समाजहित एक्सप्रेस के संपादक रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया को फोन पर बताया कि वास्तव में सगाई दो आत्माओं एवं दो परिवारों के सुखद मिलन से जुड़ा पवित्र संस्कार है, जिसे आत्मीय जनों के साथ मिलकर मानवीय व सामाजिक मूल्यों की मर्यादा का मान रखते हुए सादगीपूर्वक सम्पन्न करना चाहिए। खून-पसीने की कमाई झूठे दिखावे के नाम पर लुटा देने में भला क्या समझदारी है? फिजूलखर्च न करके बचाये गए धन का उपयोग भावी नवदंपति का भविष्य संवारने के लिए किया जा सकता है, वहीं बचत के कुछ हिस्से को सामाजिक उत्थान के कार्यों पर खर्च किया जा सकता है। क्षणिक भौतिक तुष्टि से कहीं अधिक प्रभावी है हृदय की गहराइयों से निकली शुभाशीष, जो चिरस्थाई प्रसन्नता देने के साथ सामाजिक-आर्थिक खाई पाटने में भी सहायक बनेगी।

मोहनपुरिया जी ने बताया कि एक जमाना था जब दिल्ली और गांव देहात में समाज के बड़े बुजुर्ग ही रिश्ते करवाते थे। तब वर-वधू की सगाई-शादी खानदान, देख कर की जाती थी। कई कड़ी कसौटियों पर खरा उतरने के बाद ही जोडिय़ां बनती थीं। सगाई-शादी के आयोजनों में भी ज्यादा ताम झाम नहीं हुआ करता था। सादगी से रीति-रिवाज, गाजे बाजे, शहनाई के साथ वैवाहिक आयोजन हुआ करते थे। लेकिन 70 की दशक में दिल्ली में शादी के आयोजनों में अहम परिवर्तन आया। शहर में जोडिय़ां बनाने से लेकर आयोजन स्थल की साज-सज्जा, टेंट, बरात, कपड़े, खान-पान,डीजे डांस, हनीमून पैकेज तक का बाजार पनपने लगा।

कुछ सालों से फिर से लोगों की च्वाइस बदली है। लोग खूबसूरती को तवज्जो ना देकर अब परिवार, नौकरी व खानदान देख रहे हैं। आजकल वैवाहिक सम्बन्धो के टूटने से लोगो में सम्बन्धो को लेकर डर समाया हुआ है।

दोनों पक्षों की ओर से सादगी के साथ सगाई रस्म का मतलब है कि सगाई समारोह सरल और बिना किसी दिखावे के हो, जिसमें दोनों परिवारों के सदस्य शामिल हो। यह एक छोटा और अंतरंग समारोह होता है, जिसमें दोनों पक्षों की सहमति और स्वीकृति होती है।

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