अखिल भारतीय रैगर महासभा के इतिहास और विधान को प्रत्येक रैगर के लिए जानना और समझना जरुरी है
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l युवा किसी भी समाज की महत्वपूर्ण इकाई होते हैं । किसी समाज के पुनर्निर्माण के लिए वहां के युवाओं का जागरूक एवं संकल्पित होना आवश्यक है । स्वतंत्रता के पूर्व संगठन के महत्व को समझते हुए स्वामी आत्माराम लक्ष्य जी व अन्य जागरूक, संकल्पित समाज सुधारक नेताओं ने 1944 को अखिल भारतीय रैगर महासभा की स्थापना की l जिसका नेतृत्व भोलाराम तोंणगरिया जी ने किया l उस समय अखिल भारतीय स्तर पर महासभा के राजस्थान 950, दिल्ली 200, मध्यप्रदेश 50, पंजाब 50, गुजरात 20 तथा महाराष्ट्र 20 कुल मिलाकर 1290 सदस्य महासभा के थे । आज सात दशक से अधिक की यात्रा में इस सामाजिक संगठन ने अनगिनत अवसरों पर अपने महत्व को रेखांकित किया है ।
समाजनिर्माण के लक्ष्य की ओर बढ़ती अ.भा.रैगर महासभा की यात्रा को संक्षिप्त भूमिका को शब्दों में पिरोकर सबके सम्मुख रखने का प्रयास किया गया है । अ.भा.रैगर महासभा की इस यात्रा का इतिहास प्रत्येक रैगर के लिए सिखने और समझने के प्रयाप्त है l समाज के कई इतिहास लिखने वाले लेखको ने अपनी अपनी पुस्तकों में वर्णित किया भी है l
वस्तुत: किसी समाज के निर्माण के लिए तीन मूल तत्व आवश्यक होते हैं । पहला है एक निश्चित भूभाग, दूसरा उस भूभाग में एकात्म की भावना के साथ रहने वाले समाज के लोग तथा तीसरा है उन सभी के बीच सदियों तक साथ रहने का आपसी प्रेम व भाईचारे का भाव, जो उन्हें बांधकर रखता है ।
रैगर समाज का नव निर्माण करने के उद्देश्य के साथ 1944 में अ.भा.रैगर महासभा ने कदम बढ़ाया । अ.भा.रैगर महासभा ने तीन प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से प्रयत्न प्रारंभ किया, रचनात्मक, आंदोलनात्मक और प्रतिनिधित्वात्मक । इन्हीं तीन प्रकार की गतिविधियों को आधार बनाकर अ.भा.रैगर महासभा ने अपनी सैद्धांतिक भूमिका अपनाई थी । समाज के युवाओ-बुजुर्गो व महिलाओ-पुरुषो को प्रत्येक राज्य स्तर पर एक साथ जोडऩे की महासभा ने पहल की, जो समाज विकास में निर्णायक सिद्ध हुई ।
अ.भा.रैगर महासभा ने समाजहित को ध्यान में रखते हुए समाज उत्थान के लिए रचनात्मक कार्यों से समाज को दिशा दी । ऐसे अनेक उल्लेख मिलते है, जिनका नेतृत्व अ.भा.रैगर महासभा ने किया और जिनके रचनात्मक परिणाम सामने आए । रैगर समाज को सही दिशा देने के साथ ही अ.भा.रैगर महासभा ने व्यापक विमर्श करके शिक्षा के द्वारा सामाजिक परिवर्तन पर जोर दिया ।
अ.भा.रैगर महासभा ने समाज को संगठित रखने के लिए दौसा, जयपुर व दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर सम्मेलन आयोजित किये और उनमे समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के प्रस्ताव पारित कर उन पर कार्य किये l समाज पर हो रहे अन्याय और अत्याचारों के विरुद्ध आवाज बुलंद की l
समय-समय पर सरकारों की ऐसी नीतियों का पुरजोर विरोध किया, जिनसे समाज की एकता एवं अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे की आशंका थी । अ.भा.रैगर महासभा के समाज विकास के संघर्षों और प्रयत्नों का विस्तृत इतिहास है । समाज के नव निर्माण के लिए अ.भा.रैगर महासभा के इतिहास को जानने और समझने की जरूरत है l