जिस वस्तु से जान खतरे में पड़ जाये, उसे त्याग देने में ही भलाई है
एक बार एक कौआ, मांस के एक टुकड़े को पकड़े हुए शांत जगह की तलाश मे उड़ रहा था ।
तभी पास में उड़ रहे #बाजों के झुंड ने उसका पीछा करना शुरू कर दिया। कौआ डर कर घबरा गया। वह ऊंची, और ऊंची उड़ान भरने लगा, फिर भी बेचारे कौआ उन ताकतवर बाजों से पीछा नहीं छुड़ा पाया ।
तभी वहाँ से गुजर रहे #गरुड़ ने कौए की आँखों की दुर्दशा और पीड़ा देखी। कौए के करीब आकर उसने पूछा, “क्या हुआ, मित्र? तुम बहुत परेशान और अत्यधिक तनाव में लग रहे हो?”
कौआ रोते हुए बोला, “इन बाजों को देखो! वे मुझे मारने के लिए मेरे पीछे पड़े हैं”।
ज्ञान का पक्षी होने के नाते गरुड़ बोला, “मेरे दोस्त! वे तुम्हें मारने के लिए तुम्हारे पीछे नहीं हैं! वास्तव में, वे मांस के उस टुकड़े के पीछे हैं जिसे तुम अपनी चोंच में कसकर पकड़े हुए हो। बस इसे छोड़ दो और देखो क्या होता है।”
कौए ने गरुड़ की सलाह मानकर मांस का टुकड़ा गिरा दिया और चमत्कारी तरीके से बाज का पूरा झुंड, गिरते हुए मांस की ओर उड़ गया।
गरुड़ मुस्कुराया और बोला, “दर्द केवल तब तक रहता है जब तक तुम इसे पकड़े रहते हो। बस इसे छोड़ दो और दर्द से मुक्ति।”
कौआ नतमस्तक हो बोला, “आपकी बुद्धिमानी भरी सलाह के लिए धन्यवाद। मैंने मांस का यह टुकड़ा गिरा दिया और अब मैं बिना तनाव के और भी ऊंची उड़ान भर सकता हूँ।”
इस कहानी में हम सभी के लिए ये #संदेश हैं:
हम ‘अहंकार’ नाम का एक बहुत बड़ा बोझ ढोते हैं, जो अपने बारे में एक झूठी पहचान बनाता है, जैसे – “मैं ऐसा हूं और इसलिए, मुझे प्यार किया जाना चाहिए, मुझे सम्मान मिलना चाहिए, और तवज्जो मिलनी चाहिए आदि।”
आइये मुक्त हो जाएं इस मूर्खतापूर्ण ‘अहंकार’ और ‘ स्वयं के प्रति मिथ्या धारणाओं’ से’, फिर देखें कि क्या होता है!