अखिल भारतीय रैगर महासभा का राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी माहौल, मतदाताओ को खुद को बदलने का यह दायित्व निभाना होगा
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l अखिल भारतीय रैगर महासभा का राष्ट्रीय स्तर पर चुनावी माहौल बना हुआ है । सामाजिक राजनीति का पारा भी सबसे ऊपर पहुंच चुका है । इसके साथ ही चुनावी चर्चाओं से बाजार गर्म है । ऐसे में हर जिले में रहने वाले समाज के लोग राष्ट्रीय अध्यक्ष के प्रत्याशी में सामाजिक विकास व राजनीतिक़ विकास के गुण वाले प्रतिनिधित्व को तलाश रहे हैं l चारो ओर राष्ट्रीय सामाजिक प्रतिनिधित्व को लेकर भी कई प्रकार के सवाल-जवाब किए जा रहे हैं ।
आगामी 25 दिसम्बर को होने जा रहे अखिल भारतीय रैगर महासभा के त्रिवार्षिक चुनाव में पहली बार अध्यक्ष पद के लिए 06 उम्मीदवारों ने अपने अपने पैनल सहित नामांकन फॉर्म भरा है l राष्ट्रीय चुनाव ने समाज में एक सामाजिक जंग का रूप ले लिया है l जहां पर हर प्रत्याशी अपने सामने 05 प्रतिद्वेंदियों का सामना कर रहा है l ऐसे में चुनाव प्रचार में एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है l जिसमे जीत हासिल करने हेतु सोशल मीडिया के द्वारा एक दुसरे की सामाजिक और राजनीतिक प्रतिष्ठा पर हमला किया जा रहा है, जो समाजहित में नहीं है l
सभी प्रत्याशी महासभा को एक नई दिशा देने के उद्देश्य के साथ व अपनी अपनी सामाजिक विकास की विचारधारा से चुनाव लड़ रहे हैं, कौन जीतेगा, कौन हारेगा l यह तो समाज के प्रतिनिधि मतदाता पर निर्भर है कि वह किसको अपना अमूल्य वोट देकर सशक्त बनाएं l ऐसे में प्रतिनिधि मतदाता व मतदाता समर्थक पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाते हुए, उसे स्वतंत्र मतदान के लिए प्रेरित किया जाना ही समाज को एक नई दिशा प्रदान करेगा ।
सामाजिक मनोविज्ञान के सिद्धांतवादियों के अनुसार : सामाजिक प्रतिनिधित्व (social-representations ) का एक व्यावहारिक उद्देश्य होता है जो प्रतिनिधित्व करने वाले को उचित मार्गदर्शन और व्यवहार की अनुमति देता है l जो व्यक्ति को अपने आसपास समाज के लोगो के साथ संतोषजनक ढंग से बातचीत द्वारा सामाजिक समस्याओ को हल करने की अनुमति देता है l “वसुधैव कुटुम्बकम” (दुनिया एक परिवार है) की अवधारणा हमारे शिष्ट समाज के सदाचार संबंधी मर्म का प्रतिनिधित्व करती है ।
अपनी जड़ों से कटकर कोई समाज या व्यक्ति किसी भी तरह के परिवर्तन के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकता है l समाज के प्रबुद्धजनों ने कहा कि यह कटु सत्य है महासभा में सही बात बोलने वाले और सुनने वाले दोनों ही कम हैं परन्तु जब भी सही बात कही जाती है तो उसका समाज और महासभा दोनों पर प्रभाव तो पड़ता है, भले ही यह बहुत सीमित होता हो l परन्तु इसका दूसरा पहलू और अधिक महत्वपूर्ण है- जिस समाज को हम बदलना चाहते हैं न तो उस तक महासभा की बात और मंशा पहुंचती है, और न ही समाज के अन्तिम व्यक्ति के विकास की बात और मंशा महासभा में गूंजती है l महासभा के जरिये समाज को बदलना संभव नहीं है l सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया नीचे से शुरू करना होती है, इसलिए लोगों को खुद को बदलने का यह दायित्व निभाना होगा l महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चरित्र समाज के लोगो के चरित्र और उसकी मांग पर निर्भर करता है जैसे समाज के लोग होंगे वैसा ही उनका राष्ट्रीय अध्यक्ष और उसकी कार्यकारिणी होगी l यदि ऐसा नहीं होता तो भ्रष्ट प्रतिनिधि बार-बार समाज का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता l