समाज को आगे बढ़ाने में संत महापुरुषों ने अपना सर्वस्व समर्पण योगदान इस समाज को दिया / भावी पीढियां ॠणी रहेंगी
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस l रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया द्वारा सोशल मिडिया के माध्यम से समाज के प्रबुद्धजनो से निवेदन कर पूछा गया था कि “रैगर समाज कौन सी विचारधारा पर जीवन जी रहा है?” इस विषय पर बहुत सी प्रतिक्रियायें प्राप्त हुई, समाजहित एक्सप्रेस के माध्यम से उन सभी प्रबुद्धजनों का हृदय की गहराईयों से आभार व धन्यवाद l उन प्रतिक्रियाओ मे से हमारी टीम ने समाजसेवी राजेन्द्र खोलिया जी के स्पष्ट व निष्पक्ष महत्वपूर्ण विचारो को समाजहित एक्सप्रेस में प्रकाशित करने का निर्णय लिया, जो विचार आपके समक्ष प्रस्तुत है :-
राजेंद्र खोलिया जी
रैगर समाज में स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज, स्वामी आत्माराम लक्ष्य जी, स्वामी जीवाराम महाराज आदि ज्ञानी, सत्संगी, महापुरुष हमारे समाज में हुए जिन्होंने नगण्य या अल्प शिक्षित होते हुए भी समाज को आगे बढ़ाने, शैक्षणिक, आर्थिक एवं सामाजिक रूप से आगे बढ़ाने में अपना सर्वस्व समर्पण योगदान इस समाज को दिया। उनके योगदान के लिए तो हमारे आने वाली पीढ़ियां भी उनकी हमेशा ॠणी रहेंगी????❤️
परंतु, वर्तमान परिदृश्य में समाज को आगे बढ़ाने के लिए मुख्यतः जिन महानुभावों को समाज इस दृष्टि से देखता है कि ये सज्जन लोग ही हमारे समाज को आगे बढ़ा सकते है, उन महानुभावों में समाज की उन्नति में सहयोग करने की पूरी क्षमता भी है परंतु, कहीं ना कहीं महापुरुषों की विचारधारा, उनकी सोच और उनके दिए मार्गदर्शन से भटकाव हो गया है और आज समाज अलग-अलग गुटों, छोटी छोटी संस्थाओं, अलग-अलग पंचायतों, यहां तक की प्रांतीय महासभाओं तक में बंट गया है। इसका सबसे मुख्य कारण राजनैतिक दलों से अधिक लगाव और समाज से कम लगाव होना है। समाज को बेहतर समाज बनाने के लिए किए जाने वाले कार्यों की प्रशंसा अतिआवश्यक है, परंतु, उसको और बेहतर बनाने के लिए सकारात्मक आलोचकों की भी उतनी ही आवश्यक होती है। परंतु, हमारे समाज में सकारात्मक आलोचक को व्यक्तिगत विरोधी मान लिया जाता है, उसके अच्छे विचारों पर भी ध्यान देनें की बजाए उसके धुर विरोधी अधिक हो जाते हैं।
आज समाज में काम करने के लिए व्यक्ति उसके बदले अधिक से अधिक सम्मान पाने के लिए अधिक महत्वाकांक्षी हो गया है। जिनके कंधों पर समाज को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है या जो इस जिम्मेदारी को निभाने के काबिल हैं, जिनके साथ समाज का अधिक से अधिक भागीदार अपनी भागीदारी निभाने को तैयार है वही समाजसेवी ऊंचे मंचों पर विराजमान होने, माला, पगड़ी से सुशोभित होने, चाटुकारों की चाटुकारिता से प्रसन्न रहने की लालसा रखता है। उनमें सबसे बड़ी कमी यह है कि वो समाज के आम समाजसेवियों, आम नागरिकों के साथ उनके बीच में दरी पर बैठने में हिचकता है।
सबसे ख़तरनाक प्रचलन समाज में यह है कि समाज में गरीब अमीर के बीच खाई बढ़ती जा रही है। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, अफसर के बीच गहरी खाई है। मजदूर व्यापारी के बीच बहुत गहरी खाई है। अफसर छोटे कर्मचारी को, अमीर गरीब को, व्यापारी मजदूर को मार्गदर्शन देकर, यथासंभव आर्थिक सहयोग देकर, उनके बच्चों के सही भविष्य की राह बताकर खुश नहीं है, वो, कहीं ना कहीं यह मानने लगा है कि इनके बच्चों को आगे बढ़ाने की राह दिखाऊंगा तो मेरे बच्चे कहीं अफसर, व्यापारी, अमीर बनने में न पिछड़ जाएं कहीं मेरे ही बच्चों का प्रतियोगी खड़ा न हो जाए। यही सोच, यही सबसे मुख्य कारण होगा रैगर समाज के पतन का।
आज समाज में झूठी शान बनाने, झूठी वाहवाही लूटने के लिए कुछ लोग नए नए हथकंडे अपना रहे हैं। डमी संस्थाओं, जिनका कहीं कोई वजूद नहीं, कहीं कोई सरकारी रिकॉर्ड नहीं, रजिस्ट्रेशन नहीं, उनमें कुछ लोग छोटे मोटे दिशाहीन प्रोग्राम करने के लिए दूर-दूर से चंदा इकट्ठा कर लेते हैं, उसका कोई उचित हिसाब-किताब नहीं रखते, आडिट आदि तो भूल ही जाइए, किसी को हिसाब दिखाने के लिए हिसाब बनाना भी नहीं आता होगा ऐसे कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जो अपने दैनिक खर्चे के लिए उस चंदे का दुरुपयोग भी करते होंगे। सामाजिक कार्यक्रमों में ओवर मेकअप करके पहुंचना यह दर्शाता है कि असली चेहरे और नकली चेहरे में बहुत भेद है। फोन करके लोगों से सोशल मीडिया पर अपनी झूठी तारीफें लिखवाना और उसके बदले मदिरा दान करना उनका फैशन बन गया है। ऐसे लोगों से समाज के सम्माननीय समाजसेवियों को एवं सम्माननीय दान दाताओं को बहुत अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। ये इतने खतरनाक लोग हैं कि ये आपके परिवार में भी फूट डाल देंगे यदि आप इनके पारिवारिक मामलों को और इनकी सच्चाई को जानोगे तो आपके पैरों तले जमीन खिसक जाएगी, आपको यकीन ही नहीं होगा कि इनका असली चेहरा ऐसा है।
समाज को यदि अपने असली मुकाम पर पहुंचाना है तो आपसी वैमनस्य को त्यागना होगा, अमीर गरीब, निम्न कर्मचारी अधिकारी, मजदूर व्यापारी के मध्य भाईचारा, प्यार, रिश्ते बनाने का आधार लाना होगा, ऊंचे मंचों का त्याग करके सबके साथ एक समान बैठक में बैठना होगा, सबके मध्य में बैठकर भोजन करना होगा, सबसे गरीब, मजदूर आदमी को अपने पास बुलाकर अपने बराबर बैठाना होगा, त्याग करना होगा, समाज के दुराचारी, दुर्जन लोगों को पीछे धकेलकर, सज्जन, इज्जतदार, चरित्रवान, शरीफ लोगों को आगे लाना होगा, तभी भविष्य में समाज का कुछ लाभ हो सकता है । अन्यथा समाज को हानि पहुंचाने में हम सभी बराबर के भागीदार तो हैं हीं ।
यह मेरे व्यक्तिगत विचार है, कोई समाजसेवी अपने पर व्यक्तिगत टिप्पणी ना समझें। ???????? राजेंद्र खोलिया ????????