दोने-पत्तल का उपयोग पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिहाज से इको-फ्रेंडली हैं
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l जब भी ग्रामीण क्षेत्रो में कोई पारिवारिक मांगलिक कार्य हो या विवाह जैसा बड़ा आयोजन होता था तो अक्सर खाना, एक पंक्ति में बैठाकर पत्तल और दोने पर ही परोसा और खिलाया जाता था तथा पानी कुल्हड़ में दिया जाता था । इस तरह से कितना भी बड़ा आयोजन हो, लेकिन कोई कूड़ा-कचरा नहीं होता था । लेकिन वर्तमान में हम दिखावे व विकास के चलते अपने परम्परा व पौराणिक चीजों को भूल जाते है, जबकि यह पौराणिक चीजे आज के युग से कई गुना अच्छी व फलदायक है ।
वही दूसरी ओर अगर हम इसी दिखावे की भीड़ पर एक नजर डालें तो आजकल शादी – ब्याह या किसी भी पार्टी में इस्तेमाल होने वाले डिस्पोजल आइटम्स जो प्लास्टिक या थर्माकोल से बने होते है जो कि कहीं न कहीं हमारे स्वास्थ के लिए हानिकारक होते है ।
पत्तल जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी आधुनिकता के युग ने इन्हें गुमनाम कर दिया । क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश की कि ये भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था? नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये “बुफे” जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नहीं सकती थी ।
जैसा कि हम जानते है कि पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जाती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है l तो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है?
लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है l जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है, उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए l जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है, उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए l पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है l केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है तथा मां लक्ष्मी के आगमन का मार्ग प्रशस्त करता है, इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है l
भीलप्रदेश मे खाखरे नामक के पत्तों से पत्तल बनाई जाती है, जो औषधीय गुणों के साथ अत्यंत शुभ मानी जाती है । पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है l पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है l पत्तले प्राकतिक रूप से स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है l अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है l अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे प्रदूषण कम होगा l डिस्पोजल के कारण जो हमारी मिट्टी, नदियों,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा l जो मासूम जानवर इन प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा l सबसे बड़ी बात पत्तले, डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है l
वैज्ञानिकों व चिकित्सकों का कहना है कि पर्यावरण व स्वास्थ्य के लिहाज से जहां थर्माकॉल हानिकारक है, वहीं मालू के पत्ते, फूल व छाल औषधीय गुणों से भरपूर हैं । मालू को हिंदी में लता काचनार कहा जाता है । मालू के पौधा पारिस्थितिकीय संतुलन के साथ ही जल स्रोत व मृदा संरक्षण में अहम होता है। मालू के पत्तों के काढ़े से शरीर में बन रही गांठों की बीमारी दूर होती है । खांसी, जुकाम व पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने के लिए भी मालू के पत्तों का उपयोग किया जाता है। मालू उपयोग के बाद भी लाभकारी होता है ।
जहां हम लोग इसके महत्व को भूलते जा रहे है वही दूसरी ओर पश्चिमी देशों में लोग स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रहे हैं और वो लोग इसका प्रयोग पत्तल आदि के रूप में कर रहे हैं । जर्मनी में इससे बनी पत्तल को नेचुरल लीफ प्लेट के नाम से जाना जाता है और युवाओं में खूब रुचि देखने को मिल रही है । जहां हमने अपने इस पारम्परिक व्यवसाय को खत्म कर दिया वहीं जर्मनी में इसे लेकर एक बड़े व्यवसाय ने जन्म ले लिया है । वहा इससे निर्मित पत्तलों आदि का प्रयोग होटलों में भी किया जा रहा है । यह एक फैशन बन चुका है । यूरोप में बहुत से बड़े होटलों में इन पत्तलों का भारी मात्रा में आयात भी किया जाता है ।
ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का विश्व मे कोई मुकाबला नही है….. हमारी आदिवासी संस्कृति विश्व में सबसे सटीक एवं ज्ञान से परिपूर्ण है एतएव अपनी संस्कृति भी सुरक्षित रखें और अपने समाज का भी उत्थान करें ।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह और कथन केवल सामान्य सूचना के लिए हैं । समाजहित एक्सप्रेस यहां इस लेख फीचर में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है । इस लेख में निहित जानकारी विभिन्न माध्यमों से संग्रहित की गई हैं । पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें ।