बाबूलाल बारोलिया द्वारा रचित कविता “मिटटी की दुनिया”

मिट्टी की दुनियां
मिट्टी की ये दुनियां है
मिट्टी से ही सृष्टि है।
देखो आग में तपाकर
और देखो इसे जलाकर
सब कुछ मिट्टी ही मिट्टी है।।
तन हमारा मिट्टी का है
और मिट्टी का ही मन है
जल गगन और समीरा
छोड़ के सब कुछ मिट्टी है ।
मिट्टी से ही सारी सृष्टि है।
सोना-चाँदी, ताँबा-पीतल
हीरे मोती और जवाहरात
सभी धातुएँ मिट्टी हैं।
अन्न,दूध फल फूल, सब्जियाँ,
कन्दमूल सब कुछ मिट्टी हैं
मिट्टी से ही सारी सृष्टि है।।
कपड़े-लत्ते, बिस्तर और फर्नीचर
बर्तन, गहना जेवर मिट्टी है
बंगले फ्लैट, कार, प्लेन
रेल यान, कल- कारखाने
होटल, रेस्तरां,रिसॉर्ट सब मिट्टी है
मिट्टी से ही सारी सृष्टि है।
चहुं ओर ध्यान से देखो
आपके आजू-बाजू सब कुछ
ऊपर-नीचे मिट्टी है
मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारा
उसमें विराजित मूर्त मिट्टी है।
मिटी से ही सारी सृष्टि है।
नदी तालाब कुएं बावड़ी
गागर,सागर और महासागर
घाट पे सब-कुछ मिट्टी है ।
मिट्टी से ही जग सारा है
पोथी और धर्मशास्त्र भी मिट्टी है
मिट्टी से ही सारी सृष्टि है।।
हे मानव क्यों इतना इतराता है।
जग में आकर लड़ना किस से है
तू भी मिट्टी, और जग मिट्टी है
कितना भी तू ज्ञान लड़ा ले
अन्त में सब कुछ मिट्टी है।
मिट्टी से ही सारी सृष्टि है।।
हे “बाबू” तू निश्चय कर ले
क्या खोना क्या पाना है
खो ले , पा ले , कुछ भी कर ले
खोल के चक्षु देख जरा
अन्त हमारा मिट्टी है ।
मिट्टी से ही सारी सृष्टि है।।
🙏🌹 बाबू लाल बारोलिया, अजमेर 🌹🙏