झालावाड़ में स्थित पनवाड़ी की माताजी श्री नानादेवी माँ आने वाले श्रद्धालुओं का मनमोह लेती है
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रामलाल रैगर) l झालावाड़ । श्री सूर्यवंशी कुमरावत (तम्बोली) समाज की कुल देवी जो रियासत कालीन गांवड़ी के तालाब, झालावाड़ में स्थित है जिसे पनवाड़ी की माताजी के नाम से जाना पहचाना जाता है, वास्तविकता में पनवाड़ी की माताजी का असली नाम श्री नानादेवी माँ है । इस मंदिर के बारें में नला मोहल्ला, झालावाड़ निवासी लक्ष्मीकान्त पहाड़िया ने समाजहित एक्सप्रेस के संवाददाता रामलाल रैगर को बताया उसका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है :-
इस मन्दिर परिसर की प्राकृतिक छटा अद्वितीय व अतुलनीय है जैसे ही श्रद्धालु/दर्शनार्थी अपने कदम इस परिसर में रखता है, उसे ऐसा प्रतीत होता है कि दुनिया का स्वर्ग यही है उसके मन में शान्ति का आभास होता है और उसका मन प्रफुल्लित हो उठाता है । जब वह माता के दर्शन करता है तो उसका रोम-रोम आनन्दित हो उठता है, माँ उसका मनमोह लेती है, उसके दुःख दर्द स्वतः ही नष्ट हो जाते है, वह एक बार माता के दर्शन करके जाने के पश्चात् बारम्बार माता के दर्शन करने के लिए उसके मन में कौतुहल सी लगी रहती है वह दोबारा वहां पूरी श्रद्धा व भक्ति से साथ आता है और माता के दर्शन पाता है । वैसे तो माँ शब्द ही अपने आप में इतना विस्तृत है जिसका वर्णन करने की आवश्यकता नहीं है, फिर भी माँ का आँचल छत्रछाया का काम करता है, चाहे वह दुःखी हो लेकिन अपने बच्चों को कभी दुःखी नहीं देख सकती ।
प्राकृतिक सौन्दर्य:- माँ का दरबार गांवड़ी तालाब के किनारे पर स्थित है जहां पर तालाब की हिलौरो के साथ-साथ उसके अन्दर की मछलियों की अटखेलियाँ व्यक्ति के मन को आनन्दित कर देती है तथा बरबस उसका मन उनको दाना डाले बगैर नहीं रहता । एक ओर पर्यटक हट्स, खजूरों के झुण्ड, वहीं दूसरी ओर बरगद, पीपल व नीम जैसे वृक्षों की छाया पूरे परिसर में रहती है जिसकी छाया में बैठकर श्रद्धालु एक आत्मशान्ति की अनुभूति करता है । वहां से रेल्वे स्टेशन का नजारा जहां तालाब के किनारे से गुजरती हुई रेलगाड़ी मन को आनन्दित कर देती है, वहीं सांयकालीन जब सूर्य अस्ताचल की ओर जाने लगता है तब पहाड़ियों की ओट से लालिमा बिखेरता हुआ लाल रंग का सूर्य जो उसकी लालिमा की परछाई तालाब में नजर आना, उसी दौरान शाम के समय की रेलगाड़ी का तालाब के किनारे से व पहाड़ियों के आगे से गुजरने का नजारा देखकर मन बरबस कह उठता है, स्वर्ग तो यहीं है, स्वर्ग तो यहीं है ।
शारदीय नवरात्रा में होते है कई कार्यक्रम- शारदीय नवरात्रा से पूर्व माँ श्री नानादेवी मन्दिर परिसर की सम्पूर्ण साफ सफाई व रंगाई पुताई की जाती है तथा नवरात्रा के प्रथम दिन नवरात्रा स्थापना की जाती है तथा माँ के दरबार में अखण्ड ज्योत जलाई जाती है वही पण्डित द्वारा दुर्गा सप्तशती व माँ दुर्गा के पाठ किये जाते है तथा समाज द्वारा नवरात्रा में प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है, जिससे अखण्ड ज्योत का ध्यान रहे तथा माँ का दरबार खुला रहे, जिससे आने वाले श्रद्धालु व दर्शनार्थियों को इसका अधिकाधिक लाभ मिल सके । जो भी व्यक्ति मनोकामना करता है, उसकी माँ मनोकामना पूर्ण करती है । वहीं नवरात्रा की सप्तमी के दिन बच्चों के रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है तथा अष्टमी से दशहरे तक महिलाओं, पुरूषों व बच्चों के द्वारा गरबा/डाण्डिया खेले जाते हैं । अष्टमी को रात्रि जागरण, नवमी को पूर्णाहुति हेतु हवन किया जाता है, तत्पश्चात् नवरात्रा उठाये जाते है तथा दशहरे के दिन समाज बन्धुओं द्वारा माँ की पूजा अर्चना की जाती है, सांय कालीन आरती कर दशहरे पर सभी एक दूसरे से मिलकर दशहरे की बधाईयां देते है व सभी गिले शिकवे दूर किये जाते है । जिसमें समाज बन्धु बढ़-चढ़ कर भाग लेते है ।
माँ श्री नानादेवी के साथ कई थानक है परिसर में:- माँ श्री नानादेवी मन्दिर के अलावा माँ झूमा देवी, गणेशजी, चौसठ योगिनी, कालाजी, माँ संतोषी, काली कंकाली, झुण्ड भैरू, चामुण्डा माता, बालाजी, नाहरसिंगी, सगसजी महाराज, शिव परिवार आदि थानक है, जिनकी नवरात्रा में प्रत्येक दिन पूजा अर्चना की जाती है तथा शिव परिवार की पूजा अर्चना करने पास में बसी कालीदास कॉलोनी के भक्तजन आते है तथा माँ की आराधना व पूजा अर्चना भी करते है ।
दूर-दूर से आते है यात्री – नवरात्रा के समय में श्री नानादेवी माता के दर्शन का लाभ लेने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु एवं दर्शनार्थी आते है, जो माँ से अपनी मनोकामना करते है तथा पूर्ण होने पर अपनी बोलारी भी उतारते है । माँ श्री नानादेवी सभी की मनोकामना पूर्ण करती है इसी कारण दूर-दूर से यात्री उनकी एक झलक पाने के लिए दौड़ा चला आता है और माँ का आशीर्वाद पाकर जाता है ।