आध्यात्मिक पर्व गुरु पूर्णिमा पर स्वामी जीवाराम जी महाराज का जीवन वृतांत
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस
स्वामी जीवाराम जी महाराज का जन्म सम्वत् 1958 वि. श्रावण शुक्ल दूज (5 जुलाई 1901) शनिवार को ग्राम भावपुरा जिला जयपुर (राजस्थान) में श्री लालुरामजी बाकोलिया के घर हुआ था । उनके गुरू का नाम स्वामी भदुरामजी था । जीवारामजी कबीर पंथ के अनुयायी थे । इन्होंने सम्वत् 1997 वि. भाद्र शुदि (6 जुलाई 1983) जन्माष्टमी को दिल्ली में ‘श्री रामजन पंथ’ का निर्माण किया । यह संस्था आज भी ‘रामजन मण्डल’ के नाम से प्रसिद्ध है ।
स्वामी जी ने रैगर समाज ही नहीं बल्कि अन्य समाजों में भी भ्रमण करके अपने उपदेशों द्वारा लाखों लोगों को ज्ञान देकर भक्ति का मार्ग दिखाया । जीवन भर शहरों तथा गांवों में जाकर सत्संग, भजन तथा कीर्तन आदि करवाते रहे । इनके हजारों शिष्य हैं । स्वामीजी का क्षेत्र आध्यात्मिक सुधार था । उन्होंने पूरे जीवन का प्राप्त अनुभव का सार 22 ग्रन्थों में प्रकाशित किया ।
स्वामीजी की प्रमुख रचनाएं – श्री रामजन बोध सागर, भक्ति प्रकाश प्रभाकर, मनुष्य बोध भजनमाला, अनुभव प्रकाश, वाणी संग्रह, संतवाणी विलास, ब्रह्मज्ञान, वाणी प्रकाश आदि जीवनराम, जीवाराम, जीवानन्द तथा जीवादास के नाम से विख्यात हुए हैं । 6 जुलाई, 1983 को स्वामीजी देवलोक सिधार गये तथा 8 जुलाई, 1983 को श्री रामनगर कॉलोनी सांगानेर (जयपुर) में लगभग 30 हजार लोगों की उपस्थिति में इन्हें समाधिस्थ किया गया । समाधि की जगह पर ही स्वामीजी की स्मृति में एक बहुत बड़े मंदिर का निर्माण किया गया । 18 अगस्त, 1985 को स्वामीजी के 84 वे जन्म महोत्सव के उपलक्ष में श्री रामजन मण्डल के तत्वाधान में श्री रामजन मंदिर बापा नगर नई दिल्ली में स्वामी जीवारामजी की मूर्ति प्रतिष्ठित की गई ।
स्वामीजी द्वारा संस्थापित ‘रामजन मण्डल’ आज भी मानव कल्याण के लिए शिक्षाप्रद भगवत् भक्ति का प्रचार करने में सहायक सिद्ध हो रहा है ।
(साभार – रैगर जाति : इतिहास एवं संस्कृति, रैगर गरिमा)