रैगर समाज की एकता कायम करने के लिए सभी सामाजिक संगठन गठबंधन कर एकजुटता से कार्य करें
रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया
स्वार्थ त्यागकर परमार्थ की ओर बढे l इतिहास गवाह है कि रैगर समाज का सामाजिक सुधार एवं उत्थान सदैव धन एवं पद विहीन लोगों ने ही किया है l हमारे सभी महापुरुष बुद्धि-विबेक में अद्वितीय परन्तु साधन विहीन ही थे, उनका संबल केवल समाज था l समाज के लोगो को चाहिए जो व्यक्ति समाजहित का कार्य कर रहा है उसे संबल प्रदान करें l रैगर समाज एकता – जिन्दाबाद ! जिन्दाबाद ! जिन्दाबाद !
रैगर समाज में मिश्रित विचारधारा और संस्कृति है जिसके कारण कोई एक विचारधारा हमारे समाज में स्थान नहीं बना पायी है, इसलिए सामाजिक स्वाभिमान इसमे कहीं परिलक्षित नहीं होता l सामाजिक स्वाभिमान बोलने से नहीं, व्यवहार से परिलक्षित होता है, और हमारा सामाजिक व्यवहार ही हमें कमजोर बना रहा है l हमें पहले इस व्यवहार को बदलना पड़ेगा तभी हम मजबूत होंगे और हमारा संगठन मजबूत होगा l
जब हम बीमार होते है तो हमे परिजन डॉक्टर के पास ले जाते है डॉक्टर साहब बीमारी की जाँच कर हमारे शरीर के किसी एक भाग में इंजेक्शन लगा देता है और इंजेक्शन की दवा पुरे शरीर पर अपना प्रभाव दिखाती है l ठीक उसी प्रकार हमारा शरीर रूपी समाज विगत 20 वर्षो से बीमार चल रहा है और किसी भी सामाजिक संस्था द्वारा बीमार समाज को स्वस्थ करने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा l अवैज्ञानिक तरीके से झाड़ फुन्ख का कार्य कर इतिश्री की जा रही है l जिसके कारण सामाजिक एकता विखराव के रास्ते पर अग्रसर है l छोटी बड़ी सामाजिक संस्थाएं इस बिखराव का पर्याय बन गई है l आज का सामाजिक सच यही है l
मै हमेशा यह कहता और लिखता रहा हूँ कि “सामाजिक सेवा के कंटीले पथ पर चलने के लिए गलत को गलत कहने का सामर्थ्य पैदा करो” तभी सच्ची समाज सेवा हो सकती है l अभी सोशल मिडिया के प्लेटफार्म पर छोटी बड़ी सामाजिक संस्थाओ के ऊपर कुछ लोगो के अपने-अपने चश्मे की सुझबुझ के विचार एवं प्रतिक्रियाएं पढ़ रहा था तो ऐसा लग रहा था कि महापुरुषों द्वारा समाज रूपी जिस चादर को बुना था मानो उसका एक एक तार/धागा सभी अपनी क्षमता के मुताबिक खीच कर अपने पाले में ले जाने का प्रयास कर रहे हो l
अपनी अपनी विचारधारा को जन्म देते-देते विचारों के मकडजाल में फंसा सामाजिक व्यक्ति बिखराव के सिवा समाज को कुछ नहीं दे सकता l सहस्त्र विचारधारा समाज का विकास नहीं, विनाश कर सकती है l वर्तमान में अधिकतर लोग बहुत ही अच्छे, विनम्र, कुशल एवं सक्षम लोग भी समाज में मौजूद हैं, जो कुछ भ्रष्ट लोगो की अयोग्यता से भिड़ना नहीं चाहते और उन्हें निरंकुश छोड़ कर चर्चा से बाहर निकल जाते हैं l भ्रष्ट लोगो की गाली गलौच वाली अमर्यादित भाषा से लड़ने में सक्षम होते हुए भी तथाकथित प्रबुद्ध मर्यादा की चादर ओढ़ कर सोये रहते हैं, जो मेरे दृष्टि से उचित नहीं है l
जागिये, संभलिये और संभालिए अपने विरासत को, सामाजिक एकता को, समाज को एवं आने वाली अगली पीढ़ी को l समाज के लिए बने प्रभुत्व वाले संगठनो को सूत्रधार की भूमिका निभाते हुए सभी संस्थाओं को एक माला में पिरो कर समाज/जातमाता के गले में सुंदर माला सुशोभित करने का प्रयास करना चाहिए और मंच,माइक और पगड़ी की लालसा का त्याग करना चाहिए l स्वार्थ त्याग कर परमार्थ की ओर बढे l