चिंतन – बस्ता का बढता बोझ तले दबता बचपन; बच्चों के शारीरिक विकास में बन रहा बाधक
बच्चों की स्कूली शिक्षा को लेकर आज हर अभिभावक एवं पालक बड़ी सजगता से ध्यान दे रहे हैंl सुबह सात बजे से लेकर ग्यारह बजे तक का समय आप सड़कों में ढ़ेरो स्कूल बस एवं अपने कन्धों में बस्ता का बोझ उठाये बच्चों को देख सकते है l स्कूली बस्ते वैसे तो पढाई के लिए उपयोगी किताबो से भरा होता है, बच्चों को इसमें रखी किताबों से ही तो शिक्षा मिलने वाली है l किताबों की दुकानों पर सिलेबस की खरीद के लिए अभिभावकों की कतारें और इन्हीं किताबों के बोझ तले मासूमों का बचपन दब रहा है। नर्सरी, एलकेजी- यूकेजी में ही बच्चों की हिंदी, अंग्रेजी, गणित, ड्राइंग आदि विषयों की कॉपी-किताबें होती हैं। ऐसे में बच्चों की मोटी कॉपी और किताबों का बैग और बच्चे के की पानी की बोतल के साथ वजन औसतन पांच किलो तक हो जाता है। इस तरह कंधों पर बस्तों को टांग कर बस स्टॉप पर स्कूल बस अथवा वैन का इंतजार करते हुए बच्चे आसानी से देखें जा सकते हैं। स्कूल जाने से लेकर वापस लौटने तक बस्ता बच्चे के कंधे पर लटकता है, इससे बच्चे असहज होते जा रहे हैं। भारी बस्तों के चलते बच्चों की सेहत प्रभावित हो रही है। खासकर, कमर की हड्डी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की आशंका बढ़ जाती है।
सरकारी स्कूलों में राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद की पुस्तकों का चलन से उनका बस्ता के बोझ को सामान्य रखने की कोशिश की गई है, यह पुस्तके अपने आप में पूर्ण है; यह सभी शिक्षण बिन्दुओं पर विस्तारपूर्वक योजनाओं का निर्माण करती है। ये पुस्तकें विषयानसार उपयुक्त उदाहरणों के साथ सतत एवं व्यापक मूल्यांकन के संदर्भ में एक समझ बनाता है कि सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के दौरान सतत एवं व्यापक मूल्यांकन का कैसे उपयोग करें। इस तरह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विद्यार्थी और शिक्षक के अलावा माता-पिता, समुदाय के सदस्य और शैक्षिक प्रशासकों को भी विद्यार्थियों के सीखने के बारे में जानने और उसके अनुसार बच्चों की सीखने संबंधी उन्नति पर नज़र रखते हुए बनाई गई है l राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद या राज्य शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद की पुस्तकों को राष्ट्रिय एवं राज्य के शिक्षाविदो के द्वारा तैयार की गई इन पुस्तकों को बच्चों के लिए अधिकतम सीखने के प्रतिफल को ध्यान में रखकर बनाई गई है, इन पुस्तकों से ही पढ़कर हम सब आज समाज में अच्छी स्थिति में है एवं अच्छे से अच्छे पदों पर आसीन होकर देश विकास में सेवा दे रहे है l परन्तु आज पता नहीं कैसा दौर देखन एके लिए मिल रहा है, निजीकरण ने जैसे बच्चों के पढ़ने एवं सीखने के लिए एक-दूसरे में प्रतिस्पर्धा चला दी है कि सब के सब अब निजी स्कूल में ही अपना भविष्य खोजने में लग गए है l सभी को ऐसा लगने लगा है कि निजि विद्यालय बच्चों के लिए बेहतर है इसके अलावा कुछ नहीं; अभिभावकों का ऐसा मानना इसलिए हुआ है क्योंकि निजी स्कूल का लुहावनापन, और बची-कुची कसर अंग्रेजी शिक्षा ने निकाल दी, अब हर तरफ अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज, मात्र भाषा एवं हिंदी की तरफ से रुझान कम होकर पश्चात् संस्कृति, विदेशी भाषा एवं दिखावे की तरफ आकर्षण बढता जा रहा है, जिसका खामियाजा हमारे नानिहालो को चुकानी पड़ रही है l
जब सरकार द्वारा निर्धारित पुस्तकें से बच्चों की सीखने का प्रतिफल को हासिल किया जा सकता है तो निजी स्कूलों में अनिवार्य पुस्तकों का संचालन समझ से परे है l बच्चों को अतिरिक्त ज्ञान के नाम पर पूर्व प्राथमिक कक्षा से 10-12 अतिरिक्त पुस्तकों बोझ दे दिया जाता है l जिस नन्ही सी जान को अभी पुस्तक का मतलब भी नहीं पता उसे पुस्तकों के नीचे दबाने की पूरी योजना बना ली जाती है l पुस्तकों के वजन से बच्चे एवं पुस्तकों के चार-पांच गुने दामों से अभिभावक दबता रहता है l बच्चे अपने बस्ता के बोझ से कमर पर कहर बरसाने को मजबूर है l बेचारे नन्हे से बच्चे अपने भविष्य बनाने के लिए अपने पीठ में लादकर इन पुस्तकों का बोझ ढ़ोते- ढ़ोते अपनी कमर को धनुष बना लेते है l आधुनिक शिक्षा जिस तरह हमारी संस्कृति पर हावी होती जा रही है,वरन हमारे बच्चों पर भी सामान्य से भी अधिक बोझ बनती जा रही है। अपितु इससे बच्चों का शारीरिक व मानसिक संतुलन भी प्रभावित हो रहा है। बच्चे पहले जहां अपनी पढ़ाई के साथ-साथ माता-पिता के दैनिक कार्यों में भी सहायता करते थे,और शाम होते ही चौगान में अपने खेलकूद के क्रिया कलापों में भी अपना जी भर के मनोरंजन करते थे,जिससे मन और दिमाग में ऊर्जाप्रवाह बनी रहती थी, वहीं आज किताबों के बोझ से बस्ते भारी हो रहे है। समय रहते हुए इस समस्या से निजात नहीं पाया गया तो देश के बच्चे इस बोझ के तले दबते जायेंगे और मोटी पुस्तकों एवं इसका वजन इन्हें असमय किसी अज्ञात दुष्परिणाम की ओर धकेलता जा रहा है l
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं l लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है, इसके लिए समाजहित एक्सप्रेस न्यूज़ पोर्टल उत्तरदायी नहीं है l)