Wednesday 16 April 2025 1:42 AM
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समाज के समाज सेवको की  स्थिति व वर्तमान सन्त, महात्माओ की स्थिति ।

सामाजिक चिंतक.हनुमान आज़ाद ने पिछले कई  वर्षों के सामाजिक क्षेत्र के अध्ययन के दौरान सदैव ही यह अनुभव होता रहा कि आत्मानुभूति एक महान और उच्च आदर्श है। इसके अन्तर्गत व्यक्ति तथा समाज दोनों का ही हित सम्भव है। चूँकि सभी की भलाई प्रत्येक की भलाई है, इसलिए व्यक्ति तथा समाज दोनों के विकासात्मक उद्देश्यों के व्यापक रूपों को समन्वित करके सामाजिक संगठनों का एक ही उद्देश्य होना चाहिये। प्रस्तुत है सामाजिक चिंतक.हनुमान आज़ाद द्वाराअनुभव के आधार पर व्यक्त किये गए समाजहित में विचार :-

समाज के समाज सेवको की  स्थिति व वर्तमान सन्त, महात्माओ की स्थिति ।

वर्तमान में समाज के ऐसे सन्त भी हैं, जो पहले ही किसी भी राजनेता के सामने  हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं ।  कही  इन सन्तो का  विधानसभा , सांसद का टिकट नही कट जाय  ।

पता नही क्यो हमारा साधरण आदमी हो , अधिकारी हो , कर्मचारी हो या कोई सन्त महात्मा हो, क्यो ये गुलामी की आदत को छोड़ना ही नही चाहते । क्यो इन नेताओं के आगे पीछे घूमने लग जाते है । क्या हमें सिर्फ गुलामगिरी ही आती हैं । हमे अपनी ताकत दिखाकर अपने अधिकार छीनने नही आते । हम क्यो वही पुरानी बुजुर्गों वाली परिपाटी अपनाये हुए है, जबकि वो जमाना कुछ और था , आज जमाना कुछ और हैं ,हम लोगो ने जमाने के साथ चलना सीखा ही नही ।

जिसे देखो वही हल्दी की गांठ मिलते ही पन्सारी बन कर बैठ जाता हैं और ऐसे पेश आता है जैसे कही का जागीरदार हो, महाराजा हो । पल्ले  में कोयला, नाम दौलतराम ।

आज जिस प्रकार पद बांटे जा रहे हैं उसी में देख लीजिए क्या पावर हैं इन पदों में । पद मिलने से कौनसी जागीर मिल गई जो इतने इतरा रहे है । ये बिना काम के बिना महत्व के पद प्राप्त कर हर कोई अपने आप को शहंशाह समझ रहा है । जबकि ऐसे शहंशाहों के जीवन का इतिहास का मालूम किया जाए तो सामने आता है कि इन लोगो ने समाज हित आजतक कुछ  किया ही नही ।

कई ऐसे बिरले व्यक्ति भी होते है, जो समाज हित बहुत कुछ करते रहते है परन्तु दिखावा नही करते और उन्हें समाज हित के लिए ऐसी संस्थाओं की जरूरत नही होती । सच्चे व ईमानदार समाज सेवी ऐसी संस्थाओं को तबज्जो नही देते ।

जिन्होंने आज तक समाज हित कुछ नही किया, वो लोग दिखावे के लिए ऐसी संस्थाओं का सहारा लेते हैं । ज्यादातर लोग तो ऐसे हैं जो सरकारी नोकरी में पद पर रहते हुए समाज को जानते ही नही । और जैसे ही सेवानिवृत्त हो जाते है तो इनको समाज व समाज सेवा याद आती हैं, फिर ऐसे लोग छल, कपट , धन व बल से ऐसी समाजिक संस्थाओं पर कब्जा जमा कर बैठ जाते है ।और सिर्फ अपने को खुद को, अपने रिश्तेदारों को अपने चहेतों को राजनीतिक पार्टियों के टिकट लेने के लिए जुगत बैठाते हैं । ऐन केन प्रकारेण सांसद , विधायकी का टिकट प्राप्ति का असफल प्रयास करते हैं ,जिसमे नतीजा वही ढाक के तीन पाँत । हाथ कुछ भी नही आता और अपना सा मुँह लेकर बैठ जाते है ।

कौन तबज्जो देता है ऐसी संस्थाओं और इन संस्थाओं के पदों को । पता नही कितनी एक से बढ़ कर एक संस्थाए काम कर रही हैं । जबकि सच तो यह है कि ये सब पदों के लालची, बिना कुछ समाज हित किये वाह वाही चाहते है । ये सभी लोग राजनीतिक पार्टियों से टिकट चाहते है । और निज स्वार्थ प्राप्त करने का असफल प्रयास करते हैं । इनमे भी कई तो ऐसे भरे पड़े हैं जो कई वर्षों से किसी ना किसी पद पर आते रहते है ,और अपना स्वार्थ सिद्ध करते रहते है ।

ये लोग इन संस्थाओं से फेविकोल की तरह चिपके रहते है , सोचिये कोई तो कारण होगा चिपके रहने का । यही है आज की समाज सेवा ,आज की सामाजिक संस्थाओं की कहानी । हाँ इन बातों से समाज मे एक उन्नति जरूर हुई हैं , वो हैं आपसी दुश्मनी व रंजिस ,ये इन संस्थाओ की सबसे बड़ी देंन है , सबसे बड़ी कामयाबी हैं ,जो इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से मुद्रीत की जाएगी ।।

इन संस्थाओं में जो जिम्मेदार व्यक्ति जो मठाधीश होता हैं ,वह समाज हित किये गए सवालो का खुद जबाब नही देकर अपने चहेते  गलत मानसिकता वाले ,आधी अधूरी जानकारी वालो को आगे कर देता है । और ये लोग मुद्दे की बात से हट कर ओछेपन पर आ कर अपनी ओकात दिखाते हैं । जिससे वाद विवाद बढ़ता है । और यही वाद विवाद आपसी दुश्मनी का रूप ले लेता है । यह एक सच्चाई है ।

ऐसे लोग व ऐसी संस्थाए समाज को जोड़ने में नही, समाज को तौड़ने में , समाज मे वैमनस्यता फैलाने में , आपसी कटुता फैलाने का घृणित कार्य ज्यादा कर रही हैं ,और समाज के विकास के नाम पर शून्य हैं ।

यदि ये संस्थाए व इनके मठाधीश या इनके ये चहेते लोग सच्चे हैं , सही है , तो ये बताने का कष्ट करें ,कि आज तक समाज हित मे इन्होंने किया क्या है । कौन कौन से आडम्बर , पाखण्ड समाज से दूर किये हैं , कौन कौन सी कुरीतियों व  अंधविश्वास का खात्मा किया है । या इनको खत्म करने हेतु क्या क्या कदम उठाए गए हैं । समाज मे होते आ रहे अन्याय , अत्याचार व शोषण के विरुद्ध इन्होंने कब कब आवाज बुलंद की है ,या आवाज उठाई है , आंदोलन किये हैं । आगे भविष्य के लिए इन्होंने क्या योजना तैयार कर रखी है । समाज के आर्थिक उत्थान हेतु इन्होंने आज तक क्या क्या कदम उठाए हैं ।

समाज के शैक्षणिक स्तर को बढाने हेतु क्या क्या प्रयास किये हैं । है , कोई जबाब इन मठाधीशों के पास , हैं , कोई सामान जो समाज को दिखा सके । इन बातों पर कोई नही बोलना चाहता , पता नही समाज के लोगो को कौनसा डर हैं । जो इनको सच्चाई बोलने ही नही देता । समाज के लोग इतने क्यो घबराते हैं । क्यो सही बात कहने से भी हिचकाते हैं । क्यो सही को सही और गलत को गलत नही कहते । क्या यही समाज के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण है ।

समाज बंधुओं अपने मन से डर को दूर भगाकर खुलकर सामने आइये ,और *समाज रूपी इस डूब रहे जहाज को बचा लीजिये* ।

हनुमान आज़ाद (सामाजिक चिंतक)

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