रैगर समाज एक जाजम पर आने पर ही राजनैतिक प्रतिनिधित्व मिल पाएगा- बाबूलाल बारोलिया
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l राजस्थान विधानसभा चुनाव में राजनैतिक स्तर पर प्रमुख पार्टियों द्वारा रैगर समाज की अनदेखी किये जाने पर समाजहित की सोच के धनी सेवानिवृत बाबूलाल बारोलिया ने रैगर समाज की राजनैतिक स्थिति पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए समाजहित एक्सप्रेस को लिखित में समाज के नाम सन्देश प्रेषित किया है, जो समाजहित एक्सप्रेस के माध्यम से आपको प्रस्तुत है :
सम्मानित समाज बंधुओं,
जैसा कि सर्वविदित है राजस्थान विधान सभा के चुनाव 25 नवंबर को होने जा रहे है, राजस्थान की दोनों बड़ी राजनैतिक पार्टियों ने अपने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारने के लिए दो दो सूचियां जारी कर दी है लेकिन अफसोस है कि रैगर समाज से एक नाम भी सूची में दिखाई नहीं दे रहा है। बड़े ही अफसोस की बात है कि रैगर समाज दोनो पार्टियों के लिए हमेशा जी तोड़ परिश्रम करता आया है लोली पॉप के रूप में छोटे मोटे पद लेकर केवल मात्र वोट बैंक का कार्य कर रहा है। आखिर कब तक इन पार्टियों के पिछलघु बनते रहोगे। आखिर हमारा समाज एक जुट क्यों नहीं हो पा रहा है। कोई ना कोई तो वजह जरूर है।इस चिंतन मनन की आवश्यकता है।
रैगर समाज के समग्र विकास और सुधार पर नजर डालें तो हमने शैक्षणिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में अच्छी प्रगति की है । राजनीति में स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं जिनमें ग्राम पंचायतों, नगरपालिकाओं, नगर परिषदों तथा नगर निगम में रैगर समाज के प्रतिनिधि पहले से कई गुना अधिक संख्या में चुन कर आ रहे है । इसलिए रैगर समाज की राजनीतिक स्थानीय स्तर पर जड़े मजबूत तो हुई है,परंतु राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय स्तर पर हमारे सांसदों और विधायकों की संख्या निरन्तर घटी है । इसलिए सामाजिक सम्मेलनों, विचार गोष्ठियों तथा आपसी विचार विमर्श में रैगर समाज का हर आदमी निराशा का भाव लिए एक ही बात कहता है कि रैगर समाज राजनीतिक रूप से पिछड़कर कमजोर हुआ है । राष्ट्रीय एवं प्रदेश स्तर पर ऐसा लगता है कि जैसे रैगर समाज में राजनीतिक शून्यता आ गई है । प्रथम राजस्थान विधान सभा 1952-57 में 3, द्वितीय विधान सभा 1957-62 में 4 तथा तृतीय विधान सभा में 4 विधायक रहे है। चतुर्थ विधान सभा में 1967-72 में सर्वाधिक 5 विधायक रहे हैं । इससे पहले या बाद में आज तक रैगर समाज के इतने विधायक चुन कर राजस्थान विधान सभा में नही आए है । पंचम विधान सभा 1972-77 में 2, षष्ठम में विधान सभा में 1977-80 में 3, सप्तम विधान सभा 1980-85 में 4, अष्ठम विधान सभा में 4, नवम विधान सभा में 1990-93 में रैगर समाज के 2 विधायक निर्वाचित हुए । सबसे दुखद स्थिति दशम विधान सभा 1993-98 में रही जिसमें रैगर समाज का कोई प्रतिनिधि नहीं चुना गया । ग्यारहवीं विधान सभा 1998-2003 में 3 रैगर विधायक थे। बारहवीं विधान सभा 2003-08 में एक मात्र हीरालाल रैगर निवाई से भाजपा से विधायक चुने गये । तेरहवीं विधानसभा 2008 _ 13 में श्रीमति गंगादेवी बगरू से कांग्रेस पार्टी से चुनी गई है। चौहदवी विधान सभा 2013_18 में श्री हीरालाल निवाई से भाजपा, श्री रामचंद्र सुनारीवाल डग से भाजपा और श्रीमती गंगादेवी बगरू से कांग्रेस पार्टी से चुने गए और वर्तमान पंद्रहवीं विधान सभा 2018 _23 में श्रीमती गंगा देवी बगरू से कांग्रेस पार्टी से चुनी गई। संसद में रैगर समाज के प्रतिनिधित्व की स्थिति इससे भी बुरी है । वर्ष 1980 में रैगर समाज के दो सांसद श्री धर्मदास शास्त्री तथा श्री विरदाराम फुलवारिया चुनकर लोकसभा में गये थे । आज संसद में रैगर समाज का कोई नुमाइंदा नहीं है। यह स्थिति बेहद निराशाजनक हैं।
राजनीतिक स्थिति कैसे सुधरे :
हमारे समाज के लोग एक दूसरे की टांग खींचना, चिल्लाना और हायतौबा मचाना तो जानते है मगर समाज के प्रति अपना फर्ज निभाने का सवाल आता है, तब किनारा कर लेते है । रैगर समाज को राजनैतिक पतन की तरफ ले जाने वाले है जिनकी कथनी और करनी में अन्तर है । यह स्थिति यह स्थिति तभी सुधर सकती है जब रैगर समाज का हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझे और रचनात्मक भूमिका निभाए । रैगर समाज की राजनीतिक स्थिति को सुधारने के लिए निम्नांकित महत्वपूर्ण सुझाव दिये जा रहे है ।
1. समाज के लोगों की समान विचारधारा:
वर्तमान में रैगर समाज जितना अधिक शिक्षित होता जा रहा है उतना ही नए नए संगठन बनाकर असमान और विरोधाभाषी विचारधारा में विभाजित होता जा रहा है। आज समाज में टुकड़े टुकड़े गैंग बनवाकर पदलोलुपता में उलझता जा रहा है। संगठन बनाना बुरी बात नहीं है समाज हित में बनाना भी चाहिए परंतु जब आप एक समाज से हो तो समाज हित सबकी विचार धारा समान होनी चाहिए।
2. रैगर अपना वोट रैगर प्रत्याशी को ही देना:
आजादी के 76 वर्षों बाद भी रैगर समाज के लोग यह नहीं समझ पाए है कि अपना वोट अपनी जाति के प्रत्याशी को दिया जाना चाहिए। अपनी जाति का उम्मीदवार कैसे जीतेगा और हमारा प्रतिनिधित्व कैसे बढेगा, जब हम ही हमारी जाति के उम्मीदवार को अपना वोट नहीं देंगे तो दूसरी जाति या समाज के लोग हमारे प्रत्याशी को क्यों वोट देंगे । हमें यह भी तो समझना चाहिए कि जब जाट-जाट को वोट देता हैं, ब्राह्मण-ब्राह्मण को वोट देता है , बनिया-बनिया को वोट देता है, कोली _ कोली को वोट देता है राजपूत राजपूत को वोट देता है तो रैगर को वोट क्यो नहीं देते है । यह तो सुना ही होगा कि जाटों का नारा है कि जाट की बेटी और जाट का वोट जाट को ही जायेगा, तो फिर रैगर का वोट रैगर क्यों नहीं।
रैगरों को अपनी राजनीतिक स्थिति सुधारना है तो उम्मीदवार की योग्यता और राजनीतिक पार्टी को देखे बिना केवल ‘अपनी जाति का उम्मीदवार है’ यही देख कर वोट देना चाहिए । यह हकीकत है कि यदि कोई रैगर भाजपा, कांग्रेस या बसपा से खड़ा हो जाता है तो रैगर मतदाता अपना वोट उसे नहीं देता है वह कांग्रेस या भाजपा पार्टी के उस उम्मीदवार का वोट देता है जो रैगर समाज का नहीं है क्योंकि रैगर समाज के लोग भाजपा, कांग्रेस, बसपा आदि दलों में विभाजित है। वे पार्टी को वोट देते है ना कि व्यक्ति को। हमें सोचना चाहिए कि कोई भी राजनीतिक पार्टी काबिलियत देखकर उम्मीदवार खड़ा नहीं करती है । राजनीतिक पार्टिया अंगूठा छाप और उनके कहे अनुसार चलने वाले दलित वर्ग के नाकाबिल व्यक्ति को टिकट देती है । फिर हम उम्मीदवार की योग्यता और पार्टी को देखकर वोट क्यो दे रहे हैं । जिस दिन रैगर समाज समझ जाएगा कि मुझे मेरी जाति के उम्मीदवार को ही वोट देना है चाहे व योग्य हो या नहीं हो, चाहे वो किसी भी राजनीतिक पार्टी का का हो और चाहे व जीते या हारे । रैगर समाज इस मंत्र को अपना लेगा उस दिन सांसद और विधानसभाओं में रैगर समाज के प्रतिनिधियों की संख्या भी बढ़ जाएगी । दुख इस बात का है कि चुनावों में रैगर समाज के वे लोग समाज को धोखा देते जो बढचढकर बोलते है और हल्ला मचाते है । रैगर को रैगर ही हराते है । धर्मदासजी शास्त्री का 1985 के बाद लोकसभा चुनाव हारने का यही एक मात्र कारण था । करोल बाग के रैगरों ने धर्मदास शास्त्री को हराया । उसी सदमें से उनकी मौत हुई । फिर भी हम सबक नहीं ले रहे हैं ।
3. विभिन्न राजनीतिक दलों में विभाजन :
रैगर समाज के लोगों को किसी एक पार्टी में नहीं जाकर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में जाकर विभाजित हो चुके है। यह व्यक्ति की स्वेच्छा है कि वह किसी भी पार्टी में जाय इस से कोई फर्क नहीं पड़ता, और विभिन्न पार्टियों में जाना भी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य है कि वर्तमान में रैगर समाज कांग्रेस और भाजपा दोनों बड़ी पार्टियों का वोट बैंक बन चुका है । वह किसी दूसरी राजनीतिक पार्टी को वोट नहीं देता है । कांग्रेस का वोट बैंक होने से ही कांग्रेस रैगरों की परवाह नहीं नही करती है । भाजपा सोचती है कि रैगर समाज जन्मजात कांग्रेसी है, वह भाजपा में आ तो रहे है परंतु पहचान नहीं पा रही है, अतः समाज को कोई तवज्जो नहीं दे रही है। हाल ही में प्रदेश कांग्रेस और भाजपा संगठानात्मक नियुक्तियों में एक भी रैगर को स्थान नहीं दिया जाता है । मेरे विचार से रैगरों को भाजपा, बसपा, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी सहित सभी राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय दलों में भाग लेना चाहिए परंतु उस पार्टियों में जाकर अपनी पहचान भी बनानी चाहिए। इससे सभी राजनीतिक पार्टिया रैगरों की बात सुनेगी, उनके हितो को ध्यान में रखेगी ओर उन्हे टिकट देगी । मै किसी भी राजनैतिक पार्टी विरोधी नहीं हॅू मगर मेरा सुझाव है कि रैगर समाज किसी भी पार्टी का बन्धक नहीं है ।
4. रैगर राजनीति में सक्रिय एवं नियमित रूप से भाग लेना :
वर्तमान में रैगर एक राजकीय और व्यवसायी कौम बन चुकी है । इसलिए रैगर राजनीति में बहुत कम समय दे पाता है । रैगरों को राजनीति में आगे बढना है और सफलता हासिल करनी है तो जिस पार्टी से वे सम्बद्ध है उस राजनीतिक पार्टी की बैठको तथा कार्यक्रमों में सक्रिय और नियमित रूप से भाग लेना चाहिए । पार्टी के बडे नेता जब भी क्षेत्र में आते उनसे मुलाकात करनी चाहिए । अपनी पहचान व नजदीकियां बढानी चाहिए । कस्बों तथा शहरों के डाक बंगलों और सर्किट हाऊस में जब पार्टी के नेता आते है, रैगर समाज के बहुत कम लोग वहां दिखाई देते हैं । वर्षों तक पार्टी की सेवा करते रहने से पार्टी में जगह बन पाती है । हम सांसद और विधायक का टिकट पैराशूट से ऊतर कर लेने की कोशिश करेंगे तो उसमें सफलता की सम्भावना कम है । इसलिए पार्टी के प्रति वफादारी और नेताओं से विश्वास प्राप्त करने के लिए पार्टी के सभी कार्यक्रमों में भाग ले, पार्टी से लगातार जुड़े रहे । पार्टी के प्रति वफादारी का फल कभी न कभी जरूर मिलेगा ।
5. समाज हित की सोच:
रैगर समाज के जिन लोगों में सांसद, विधायक, आदि बनने की जिज्ञासा है तो उनको सर्वप्रथम सामाजिक क्षेत्र में नि:स्वार्थ भाव से तन मन धन से हर संभव समाज के लोगों की सहायता हेतु तत्पर रहना चाहिए। समाज को परायेपन का कभी अहसास नहीं होने देना चाहिए । उनको हमेशा समाज के बीच में रहकर उनसे संवाद करते रहना चाहिए और किसी भी विकट परिस्थितियों में अपनी भागीदारी निभाई जानी चाहिए। समाज को एक जाजम पर लाकर बैठाने की क्षमता होनी चाहिए।
अतः वर्तमान परिस्थिति को मध्यनाजर रखते हुए समाज को आपसी मतभेद भुलाकर सबको साथ लेकर चलना चाहिए। ये मेरे अपने निजी सुझाव है। सुझाव और भी बहुत सारे दिेये जा सकते है । जरूरत है सुझावों पर अमल करने की, सुझावों को व्यवहार में लाने की । अगर उपरोक्त सुझावों को अपना लिया तो आशातीत सफलता मिलेगी । लोकसभा तथा विधान सभा में रैगर समाज का प्रतिनिधित्व निश्चित रूप से बढेगा ।
बाबूलाल बारोलिया, अजमेर