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अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित सुप्रसिद्ध साहित्यकार और शिक्षाविद् डॉ. सुधांशु कुमार चक्रवर्ती

दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l डॉ. सुधांशु कुमार चक्रवर्ती एक बहुआयामी व्यक्तित्व हैं, जिनकी प्रतिभा शिक्षा, साहित्य, पत्रकारिता और रंगमंच जैसे विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है। 31 मई 1969 को माता पुष्प हंसा मित्रा और पिता राम चन्द्र प्रसाद सिंह के घर जन्मे डॉ. चक्रवर्ती ने अपने जीवन को ज्ञान की साधना और कला की अभिव्यक्ति को समर्पित किया है।

डॉ. चक्रवर्ती ने अपनी शिक्षा में जंतु विज्ञान, शिक्षा और पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की उपाधियाँ हासिल की हैं। इसके अलावा, उन्होंने नाटक और कंप्यूटर में भी डिप्लोमा प्राप्त किया है, जो उनके विविध हितों को दर्शाता है। उन्हें मानद पीएच.डी. (विद्यावाचस्पती) और मानद डी.लिट. (विद्यासागर) जैसी उपाधियाँ भी मिली हैं, जो उनके ज्ञान के प्रति समर्पण का प्रमाण हैं। पेशे से एक अध्यापक, उन्होंने केंद्रीय विद्यालय, मोकामा में पीजीटी बायोलॉजी टीचर के रूप में भी अध्यापन का कार्य किया  है।

डॉ. चक्रवर्ती का साहित्यिक योगदान उल्लेखनीय है। उन्होंने विभिन्न विधाओं में 20 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। इनमें नाट्य संग्रह ‘रंगपुष्प’, लघुकथा संग्रह ‘मां की चिट्ठी’,एक लोटा पानी’,’ शनिवार,’ ‘ सर्कस ‘और ‘शवता’, काव्य संग्रह ‘मेला’, मां की रोटी गोल – गोल’और ‘चांद हमारा’, ग़ज़ल संग्रह ‘सहर’ और शोध ग्रंथ ‘प्रदूषण’, ‘ स्कूल ऑफ जर्नलिज्म’, ‘ स्कूल,’ ‘ का. सुधा बिंदु मित्रा ,’ राजनीतिशाला ‘ , ‘ ज्ञान –  विज्ञान की पाठशाला,’ ‘ भारतीय रंगमंच परम्परा एवं प्रयोग , “बाल्यावस्था – जात से जेंडर तक ” शामिल हैं। उनकी रचनाएँ हिंदी और लोक भाषा ‘बज्जिका’ दोनों में हैं, जैसे बज्जिका में ‘गमकइत जिनगी’ और ‘नचनियाँ-बजानियाँ’। वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादक और उप-संपादक भी रहे हैं।

40 वर्षों के रंगमंच के अनुभव के साथ, डॉ. चक्रवर्ती ने भारत और नेपाल के विभिन्न शहरों में नाट्य मंचन किया है। वे सफदर हाशमी रंगमंच के सचिव हैं और बिहार आर्ट थियेटर, पटना के आजीवन सदस्य हैं। स्कूल ऑफ चाइल्ड थियेटर ,बिहार के निदेशक भी है।उन्होंने टेलीफिल्म ‘अब और नहीं’ और ‘नया सबेरा’ के साथ-साथ दूरदर्शन धारावाहिक ‘सजा’ में भी अभिनय किया है।

बाल साहित्य के क्षेत्र में, वे बच्चों के बीच अपनी कविताओं और कहानियों की नाट्य प्रस्तुति भी देते हैं। भारत ज्ञान –  विज्ञान जत्था में नाट्य प्रशिक्षक ,बिहार शिक्षा परियोजना ,वैशाली में 1998 से 2000तक माइक्रोप्लानिंग मास्टर ट्रेनर ,संकुल संसाधन केंद्र ,गाजीपुर ,देसरी (वैशाली) में समन्वयक ( 2013 से 2019) ,समन्वयक स्टडी सेंटर ,दुरस्त शिक्षा बी.आर . सी . देसरी ( बिहार ) में प्रतिनियुक्त रहे हैं।

डॉ. चक्रवर्ती ने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर कई शोध पत्र प्रस्तुत किए हैं, जिनमें ‘नाटकों में अभिव्यक्ति नि:शक्त चेतना’ और ‘किन्नर समाज के विकास में हिंदी साहित्यकारों की भूमिका’ प्रमुख हैं। विज्ञान सेमिनारों में भी उनकी भागीदारी रही है। उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए, उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित और पुरस्कृत किया गया है। उन्होंने हिंदी ,अंग्रेजी ,संस्कृत ,उर्दू, बंग्ला ,भोजपुरी,बज्जिका , अंगिका, मैथिली एवं मगही भाषाओं में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंचों पर नाट्य प्रस्तुति कर दर्शकों से तालियां बटोरी हैं।डॉ. सुधांशु कुमार चक्रवर्ती बिहार के हाजीपुर से एक ऐसी सशक्त साहित्यिक और सांस्कृतिक पहचान हैं।

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